गझल
रूखी सुखीसी दान मिली है, जैसे गरीबी थप्पड मे
जिनाभी दुश्वार हुवा है, महंगाई के चक्कर मे!!
कश्ती अपनी, दर्या उनका, कैसा यह बवंडर है ?
हाय! कमाई गोते खाये, आटा, दाल और शक्कर मे!!
मेरे घर मे क्या क्या होता, रहता है पैसो के लिये
मै उलझॉंसा रहता हूं, दिन रात हमेशा दप्तर मे!!
भुलूभी तो कैसे भुलू की कौन हू मै, और तू है क्या?
अपने आपही सामने आती, अपनी हकीकत अक्सर मे!!
दुनियादारीसे थककर मै, लोटता हू जब हारासा
खाकर खाना सो जाता हू, घर मे आकर बिस्तर मे !!
किसके पाव मे कॉटे है, किसके कदमो मे बिखरे फुल
औकात हमारी दिख जाती, है फटीपुरानी चप्पल मे
ठिक किया है मैने तुझसे, जब टाल दिया पंगा लेना
टिक न पाता मै बेचारा हाय ! तुम्हारी टक्कर मे !!