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चल खोदूया, चंद्राचा तळ, गझलेसाठी!! तिथे मिळावे, पाणी निर्मळ, गझलेसाठी!!

गुरुवार, 27 नवंबर 2014

इनायत बहुत...

इनायत बहुत...



है मुझपे खुदा की इनायत बहुत !
जेबें हेै खाली और कागद बहुत !!

नही बाज आती है मजबुरीया
टपकती है हरसाल ये छत बहुत !!

कभी वो न आया मेरे रूबरू
लिखे है उसने मुझे खत बहुत

है कॉंच का वो टुटेगा जरूर
पैमाना दिल का उछल मत बहुत !!

नही हाथ आयेगा ये चॉंद अब
करते है बच्चे ये जिद बहुत !!

साबित हुवा मै बेकत्ल लेकिन
वकीलोने की है हिमाकत बहुत !!

तेरा हटके चलना,वो हसना,बहकना
तेरी रास आती है नजाकत बहुत !!

यहा हर निगाहो से बचके रहो
की तुम हो यहा, खुबसुरत बहुत !!

जिंदा रहा, जहर पिने के बावजुद
यहा हर चिजो मे है मिलावट बहुत

बेकारही मै इन झंझटो मे पडा
दिलसे मुझको शिकायत बहुत

विजयकुमार राउत

 
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