अफवांहों की बस्ती मे, जाहिर तू जजबात न कर !! मै हू समुंदर मुझसे तू, एैसी वैसी बात न कर !! तुझसे मिलनेवालो की अब, नियत उतनी साफ नही उनसे हाथ मिलाने को तू, इतने लंबे हाथ न कर !! बेखौप है दिन का उजियाला,उतनाही गर्द अंधेरा है लौटके जा तू घर अपने, और जियादा रात न कर !! ैतो अकेलाही अक्सर, खुश हूं अपनी दुनिया मे.. मुझको चुरानेको, देकर धोका मात न कर !! वह एक जमाना गुजरा है, कोई हारा था, कोई जिता गया ! ये खेल कभीका खत्म हुवा, फिरसे तू शुरूवात न कर !!
* विजयकुमार राउत
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