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शनिवार, 1 अगस्त 2015

सत्यम शिवम सुंदरम


                                                                                       विजयकुमार राउत

हमारे बुर्जूग कहा करते थे "सत्यम शिवम सुंदरम' जानेमाने फिल्म निर्देशक कपूर की इसी नाम की फिल्मभी आयी थी. उसमे एक गीतभी था. "सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर है..' सत्य बहोत ही सुंदर और पवित्र होता है...सत्य बहोतही सरल और साधा होता है. इसलीये तो उसे शिव यानी परमात्मा कहा जाता है. लेकिन हमको व्यावहारीक जीवन मे असत्य स्वीकारना बडाही सरल लगता है. क्‍योकी हमारे सामने जो चिज चमचमाती है , उसीकी ओर हमारे कदम बढने लगते है . असत्य तो हमे बडा प्रभावित करता है. हमारा उसी के प्रति आकर्षण हो जाता है. जो हमारे फायदे का होता है उसेही हम सत्य कहते हेै. जो नुकसानदायक होता है वो हमारे लिये असत्य हो जाता है. सत्यपर सिर्फ हमारीही मालकी होती है ऐसा हम समजते है.धीरे धीरे जिंदगी मे एैसीही हमारी सोच बन जाती है.लेकीन वास्तविकता जाने तो सत्य फायदा और नुकसान के पार होता है. सत्य किसकी पैरवी नही करता बल्की सत्य सत्य होता है. यह तथ्य जिस दिन हम अपना लेते है तब हमारे जिवन मे परिवर्तन शुरू होना शुरू हो जाता है.

खलील जिब्रान की एक कहाणी है. एक बार सत्य और असत्य की दो देविया स्वर्गसे उतरकर जमींपर आ गई. स्वर्ग से लेकर पृथ्वी तक का उनका सफर था. उनके कपडे बहोतही मैले हो चुके थे. धुल चढ गई थी कपडो पर . तो उन्होने एक नदी मे जाकर स्नान करने की इच्छा जतायी . औरे वे दोनो नदी के पास गई. दोनोने अपने बदन से कपडे उतारे, किनारे पर रखे और नदी मे कुंद पडी. तैरते तैरते सत्य की देवी बडी दूर तक चली गई थी. और असत्य की देवी बहुत पिछे रह गई. उस समय असत्य की देवीके मन मे विचार आया. वापस पलटकर सत्य के देवी के कपडे उसने पहन लिये और भाग गयी. सत्य की देवी स्नान करने के बाद किनारे पर आई . उसके कपडे किनारे से गायब हो चुके थे. सुबह हो चुकी थी. नदी किनारे लोगोकी चहल पहल अब बढनेवाली थी. उसने तुरंत असत्य के देवी के कपडे पहनकर अपनी लज्जा ढांकणे की कोशिश की और वहा से भाग गयी. तबसे लेंकर अभी तक हालत वैसेही कायम है. सत्य अपने वही फटे पुराने कपडे पहने है. और असत्य की देवी आकर्षक खुबसुरत लिबास मे दुनियामे इतराते हुवे घुम रही है. जिब्रान की यह कहानी काफी मशहूर है. जिब्रानने हकीकत बयाण की है इस कहानीमे. सत्य बहोत साधे लिबास मे घुम रहा है. हमारी संस्कृतीमे अक्‍सर ऐसा हमको देखने को मिलता है. धन की देवी लक्ष्मी और विद्या की देवी सरस्वती. चित्र मे दोनो एक साथ होती है. सरस्वती जो की कला व विद्या की देवता है. वे साधे, सफेद कपडे पहनकर हाथो मे विणा लेकर प्रसन्न भाव दर्शाते हुवे बैठी है. और धन की देवी आभुषणोसे मढी हुवी आशीर्वाद देने के लिये हाथो से सोने-चांदीकी बरसात करते दिखाई देती है. हमारे समाज की निव को हम देखते है तो साफ जाहिर होता की किसी गुणवान व्यक्‍ती को पैसो के अभाव के कारण पिछे रह जाता है. हालाकी गुणवान और चारित्रयवान व्यक्‍ती हमेशा अपने कर्म को साधना और तपस्या समझकर जिता है. वो लोगो के नजर मे बिचारा गरीब कहलाता है. हालाकी वह दिलसे बहुत अमीर होता है. उसे पैसो के सामने अपमानीत होना पडता है. दुनिया चमकनेवाले जुगनू को बहुतही पसंद करती है. लेकीन वे जानते नही की चमकनेवाला जुगनू ज्यादा देर तक चमककर रोशनी नही दे पाता है.

वैसे देखा जाये तो असत्य पहचानने मे और सत्य की परख करने मे हमारी आँखे हमेशा धोखा खा लेती है. जो हमारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेता है वो कभीभी सत्य नही हो सकता. थोडा गौरसे देखेंगे तो असली बात समझ मे आ जाती है. चिनमे एक रूषी थे. उनकी सत्यके बारे मे बहुतही ख्याती थी. वो सत्य के सामने कभीभी समझोता नही करते थे. राणीने कई बार उसकी परीक्षा लेने के लिये उसे महल आने की खबर भेजी. लेकीन उस तपस्वीने राणी की आज्ञा को ठुकरा दिया. क्‍योकी कोई सत्य के शिवाय किसी और की सत्ता वे मानते नही थे. इसलिये वे राणीसे मिलने के लिये उत्सुक नही थे. राणी को गुस्सा आ जाता है. और वो उनकी परीक्षा लेने उनके आश्रम मे चली जाती है. तपस्वी से कहती है के तुम अगर सच्चे तपस्वी हो तो मेरे हाथ मे दो फुल है. उनमेसे असली कौनसा है और नकली कौनसा उसे पहचानो. तपस्वी समाधी मे लिन थे. आश्रम के दरवाजे बंद थे. उन्होने आँखे खोलते हुवै क्षणभर उस राणी को देखा और कहा, तुम्हारे दाये हाथ मे जो फुल है वो असली है और बाये हाथ का फुल नकली है. राणी अचंभित रह गयी. क्‍योकी साधू महाशय ने आँसे बंद करके यह निर्णय लिया था. राणी प्रभावित होकर साधू के चरणो मे गिर पडी. और उसने तपस्वी को पुँछा...हे तपस्वी आपके जवाबसे मै अचंभित रह गई. आँखे बंद होने के बादभी आपने यह अनुमान कैसे लगाया की मेरे दाये हाथ का फुल असली और बाये हाथ का फुल नकली है?साधू महाशय मंद मंद मुस्काये और उन्होने कहा , हे राणी आपने आश्रम मे जैसेही प्रवेश किया और असली फुल की महक मेरे नाक तक आ गई. फिर मैने आँखे बंद करने के पहले देखा की मख्खी आपके दाये हाथ मे जो फुल था उसपर बैठी है .. और मेै उस फुल की असलीयत पहचान गया. तुम्हारे दुसरे हाथ मे जो फुल था वह केवल कागज का फुल था, नकली था, यह बात मै जान गया. असली फुल नकली फुलसे जादा आकर्षक था. लेकीन उसपर कोई मख्खी बैठे भी कैसे?

जो लोग सत्य की झलक पा लेते है.. उनकी जिंदगी कुछ और हो जाती है..सुकरात जिसने सत्य की खोज की. सत्य पाने के लिये उसने जहरतक पि लिया. क्‍योकी वह जानता था की सत्य के सामने अपनी जान गई तो उसमे क्‍या बडा हुवा? गॅलीलिओ को भी सत्य का ज्ञान हुवा था. इसलीये उसने कैद पसंद की... और मर गया.

सत्य की यात्रा बडी लंबी और आनंददायी होती है. क्षणैक सुख के लिये हम झुठ का सहारा लेते है. ऐसा जरूरी नही की सत्य हमेशा हारही खा लेता है. लेकीन सत्य को निहारणे मे थोडा समय जादा लगता है. क्‍योकी उसकी यात्रा का कही हिसाब नही. असत्य की उम्र बडी छोटी होती है.

                                                                     विजयकुमार राउत

 
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